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Jagannath Puri Rath Yatra: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पीछे क्या है कहानी, कैसे पूरी हुई बहन सुभद्रा की इच्छा

 भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पीछे क्या है कहानी
भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण का ही रूप माना जाता है

Puri Rath Yatra: भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण का ही रूप माना जाता है. ओडिशा राज्य के पुरी नामक जगह पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर स्थापित है. यहां हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. इसका भक्तों को साल भर बेसब्री से इंतजार रहता है. यही कारण है कि धूमधाम से निकाली जाने वाली इस रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. यह रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह में निकाली जाती है और यह 3 किलोमीटर की होती है.


गुंडिचा मंदिर

पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में साल भर भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है. वहीं, जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है तो इन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालू आते हैं. इस बार भगवान जगन्नाथ की 146वीं रथ यात्रा निकाली जा रही है. 

महत्व

आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा मौसी के घर जाते हैं. यही वजह है कि इस दिन मंदिर परिसर से तीन विशालकाय रथों के साथ यात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा में सबसे पहले बलभद्र फिर बहन सुभद्रा और सबसे आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है. 


पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार शुभद्रा ने नगर को देखने की इच्छा जतााई थी. जब उन्होंने यह बात भगवान जगन्नाथ को बताई तो उन्होंने अपनी बहन की यह इच्छा पूरी करने की ठानी. इसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण पर निकल पड़े.

कहते हैं कि नगर भ्रमण के दौरान वह अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां तीनों से 7 दिन विश्राम किया. ऐसी मान्यता है कि तब से ही जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. इसका जिक्र नारद और ब्रह्म पुराण में भी है.

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